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बहन: कविता

 हे, भगवान! मुझे तुमसे है कुछ कहना।

तुमने दी है मुझे एक प्यारी छोटी बहना।।

किया है उपकार जो तुमने मुझ पर।

ऋणी रहुंगी मैं ताउम्र भर।।

निस्वार्थ करे वह प्यार मुझे।

मेरे लिए वह दुनिया से लड़े‌।।

अपनी गोदी में मेरा सिर रखकर।

दुलार लुटाती है वो बेहद मुझ पर।।

मेरी हर उलझन को सुलझा देती।

मेरी अनकही की भाषा बन जाती।।

मेरे हर पल की राजदार है वो।

मेरी सबसे अच्छी दोस्त है वो।।

भगवान ने जब मेरी बहन को बनाया होगा।

ममता,  करूणा का अक्श उसमें समाया होगा।।


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

जिंदगी: आलेख।

*जिंदगी* ,,,, 😘, मैं अक्सर खोजती हूं अस्तित्व अपना,,कभी अपनों, कभी गैरों के बीच,,, लेकर तराजू तोलती हूं, रखकर कर्मों को अपने,,,,तो पाती हूं पलड़ा कभी यहां हल्का तो कभी वहां भारी,,,, सोचती हूं अक्सर,,,, अनेक अक्श की एक ही तो शख्स हूं मैं,,, ममता, करूणा, प्यार, दुलार लुटाती हूं सभी में समान,,,, फिर क्यों??? इन पलड़ों में समानता नहीं आती,,,,क्या यही जिंदगी है??,,,या संग चलते हैं प्रारब्ध के हिसाब- किताब,,,🤔

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।


25/03/2022

*जिंदगी* ❤️,,,,,, जिंदगी तू बेहद खूबसूरत है।😘,,,,,कमी बस  हम में है, कि हमें जीने का सलीका भी नहीं आता।😊,,,, मैं भी मानती हूं,कि एक सुखी और मस्त जीवन के लिए धन आवश्यक है।,,, मेहनत, लगन और इमानदारी से हम सुखी और मस्त जिंदगी हासिल कर सकते हैं। 👍😊,,,, लेकिन!!!🤔 ज्यों ही छल- कपट, राग-द्वेश और मिथ्या वाकपटुता हमारी जिंदगी में प्रवेश करती हैं,,, तो,,,, घर में समस्त सुख- सुविधाओं के होते हुए भी हम एक व्यर्थ और बोझिल सी जिंदगी जी रहे होते हैं।,,,, इसलिए जिंदगी में धन के साथ स्वस्थ और प्रसन्न मन बेहद जरूरी है।,,,, है ना?✍️

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश। ‌‌‌‌


28/3/2022

जिंदगी ❤️,,,, एक लंबे अरसे बाद मैं सुकून से रूबरू हुई।,,,, जिसे ढूंढ रही थी मैं कभी रिस्तों में, कभी सुविधाओं में, तो कभी पूजा घर,,, 🤔 और कभी- कभी तो ढूंढने- ढूंढते होश ही नहीं रहता, कि मैं ढूंढ रही हूं क्या और किधर- किधर???..... बीत गया जब उम्र का एक पड़ाव।😔,,,, तब जाकर सुकून से मुलाकात हुई।😀,,,, मेरा अनुभव तो ये कहता है, कहीं नहीं मिलेगा सुकून जहां में,,,, तू खुद में ढूंढ और मन से ढूंढ,,,, दीदार होगा सुकून का तुझे भी ,,,, तेरे ही अंदर।😘👍😊😊✍️


29/3/2022

जिंदगी ❤️,,,, निकल पड़ी हूं जिंदगी, तुझे संवारने और खुबसूरत बनाने। 😘,,, सूरत का क्या है!!🤔,,,, बढ़ती हुई उम्र के साथ इस सूरत ने धीरे- धीरे ढह जाना है।🙄...✍️

स्वरचित मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।

30/3/2022

जिंदगी ❤️,,,,अपना एक सशक्त अस्तित्व बनाने के लिए हम लोग हर पल जद्दोजहद में लगे रहते हैं।,,,,, हैं, ना,,,😊 एक फैमस या आत्मनिर्भर महिला का ही अस्तित्व सशक्त हो सकता है,,,🤔 यह जरूरी नहीं है।,,,,,, व्यवहार, वाणी, सेवा और आर्थिक मदद से भी हम अपने परिवारिक और सामाजिक जीवन में अपने सशक्त अस्तित्व का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।👍,,, 

स्वरचित मंजू बोहरा बिष्ट,

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।


31/3/2022

जिंदगी,,,,🤔  आखिर ऐसा क्यों होता है, कि कमजोर आर्थिक स्थिति या अन्य छोटी सी कमी पाते ही,, उसे तूल बनाकर हमारे अपने हमारा अस्तित्व, मान- सम्मान को रौंद देते हैं।,,, तब हम सिर्फ.... कसमसाते और झुंझलाते रह जाते हैं।!!!,,,, आखिर क्यों???,, और कब तक सहन करेगी??? ✍️

स्वरचित मंजू बोहरा बिष्ट,

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।






हिंदी स्लोगन।

ना दो मां खुरपी- हंसिया, ना दो चूल्हा- चौका।

भाई के संग दो मुझे, पढ़ने का मौका।।


स्वरचित मंजू  बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

आज की नारी: कविता।- 19

दिन बीता महीना बीता बीत गए हैं साल।

बरसों से वो ढूंढ रही है अपना अस्तित्व ससुराल।।

रोज़ सुबह उठकर, लेती है झाड़ू हाथ वो।

करती है अपने घर का, कोना कोना साफ वो।।

सुबह सुबह चाय की प्याली, देती है सबके हाथ में।

कभी तोलिया, कभी कपड़े- जूते, ला- लाकर रखती पास में।।

सरपट भागती कलेवा बनाती, मनुहार से बच्चे जगाती है।

स्कूल आफिस में ना हो देरी, अक़्सर अपने हाथ जलाती है।।

एक पैर पर खड़ी होकर, वो सबकी फरमाइशें सुनती है।

सुबह से लेकर रात तक, वो मशीन की भांति चलती है।।

ना पहने वो साड़ी महंगी, ना सोने का गहना।

जानती है! तनख्वाह कम है, मुश्किल से चलेगा महीना।।

कभी ना करती कोई शिक़ायत, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है।

लक्ष्मी रूप धरकर हमेशा, पति की हिम्मत बढ़ाती है।।

एक नई उम्मीद से रोज, करती दिन की शुरुआत वो।

हर पल कोशिश रहती उसकी, अपना सौ प्रतिशत देती वो।।

छोड़ आईं माता-पिता वो, भुला दिया बचपन अपना।

घर की खुशहाली के लिए, त्याग दिया अपना हर सपना।।

हां, आजकल के कुछ बहू- बेटे, सच में ही नालायक हैं।

पर! उसने तो स्वप्न में नहीं सोचा, फिर क्यों उससे शिकायत है।।

हाथों की पांचों अंगुलियां भी, एक समान नहीं होती।

फिर क्यों कहते हैं लोग आजकल की, बहुएं संस्कारी नहीं होती।।

दर्द होता है उसे भी बहुत, जब सुनती है वो ताने।

अपने मन की पीड़ा को वो, जाए कहां बताने।‌‌।

अस्तित्व उसका मत नकारो, वो भी तो एक इंसान है।

आखिर कब तक सह पायेगी, वो भाव शून्य तो नहीं है।।

पास- पड़ोस और फ़ोन को छोड़ो, आपस में बातें किया करो। 

छोड़ो कैसी नाराजगी, सभी अपनों की सुधि लिया करो।।

आज की बहू है साक्षर कर्मठ और है वो स्वाभिमानी।

अपने हर पल का सदुपयोग करती नहीं है वो अभिमानी।।


स्वरचित मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश

सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकाशित।

नारी की महिमा: कविता।-18

ममता- करूणा, क्षमा- त्याग की, नारी है अद्भुत मिसाल।

नवल रूप में अवतरित होकर, रच- बस जाती है ससुराल।।

नित्य नए उमंग से तू, विहान की इब्तिदा करती है।

मन- वचन से शील स्नेहिल तू, बिन मोल चाकरी करती है।।

कतरा- कतरा खुद को बांटती, घर आफिस संभालती है।

घर-द्वार सजे, संसार बसे, तू अन्नपूर्णा रूप धर लेती है।।

क्षमा- त्याग के अलंकरण से, तू हर दुःख को सह जाती है।

ज़ुल्म हद से बढ़ जाए जब, तब दुर्गा स्वरूप बन जाती है।।

कभी जननी, कभी भगिनी, कभी नंदिनी तो कभी प्राणप्रिया।

अवतरित हुई जिस रुप में तू, हर रूप में तूने त्याग किया।।

दुश्वार आलम जब भी आए, कभी अधीर ना होती है।

दुर्गा, अहिल्या, लक्ष्मी, इंदिरा से, तू प्रेरणा लेती है।।

साक्षर- कर्मठ आज की नारी, और वीरा- स्वाभिमानी।

किरण, ऐश्वर्या, साइना सा अस्तित्व, पाने की अब सबने ठानी।।

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

सर्वाधिकार सुरक्षित।

परमात्मा का कैमरा। कहानी

परमात्मा के पास हमारे सभी कर्मों का लेखा-जोखा होता है, और उन्हीं कर्मों के आधार पर हमें अगला जन्म मिलता है। मृत्यु के समय अपने देह को त्याग कर जब हम यमलोक जाते हैं; तो कहते हैं चित्रगुप्त हमारे सभी कर्मों का हिसाब- किताब यमराज के सम्मुख रख देता है; और उन्हीं कर्मों के आधार पर हमें स्वर्ग और नरक का जीवन भोगना पड़ता है।,,,,, 

परमात्मा ने हर एक प्राणी के ऊपर अपना कैमरा लगाया है तभी तो हमारे सभी अच्छे-बुरे कर्म उस कमरे में कैद हो जाते हैं‌। कोई भी ग़लत काम करते समय हम सोचते हैं, कि हमें कौन देख रहा है?,,,, 

इसलिए इंसान कभी गुपचुप तरीके से, कभी अकेले में तो कभी अंधेरे  में कई छोटे- बड़े गुनाह कर देता हैं। और भूल जाता हैं, कि उप्पर वाला उसे देख रहा है।,,,,  

हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि परमपिता परमेश्वर का कैमरा हर पल हर घड़ी हमारे ऊपर लगा हुआ है। जिसमें हमारे हर एक कर्म क़ैद हो रहे हैं।

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट,

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।

मेरे प्रेरणा स्त्रोत व्यक्तित्व: आलेख

मेरे आदर्श और प्रेरणास्त्रोत मेरे माता-पिता हैं। मेरा जन्म उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में हुआ है। मैं एक किसान की बेटी हूं। जब भी किसी को मैं अपना परिचय देती हूं कि मैं एक किसान की बेटी हूं, तो मुझे स्वयं पर बहुत गर्व होता है।,,,,,,

हम पांच भाई बहन हैं। १९९८ में मेरे पिताजी का देहान्त हो गया था। उसके बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी मेरी माताजी के कंधों में आ गई। मेरी माता जी ने बहुत मेहनत और लगन से हम बच्चों की परवरिश की। और हम बच्चों को कभी भी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी।,,,,,
मुझे आज भी याद है, मेरे माता-पिता दोपहर की प्रचंड धूप में भी खेतों में काम करते रहते थे; चाहे कितनी ही विषम परिस्थितियां क्यों ना हो जाय, मेरे माता-पिता के चेहरे में कभी भी उदासी नजर नहीं आती थी, और नहीं कभी चिड़चिड़ापन दिखाई देता था। मेरे माता-पिता हम भाई-बहनों की शिक्षा का बहुत ध्यान रखते थे। आज से २२-२३ साल पहले गांवों में लड़कियों के लिए १२वी कक्षा से बाद अपनी शिक्षा को जारी रखना बहुत मुश्किल काम था। क्योंकि तब साधन सीमित थे! और महाविद्यालय बहुत दूर थे। मैं पढ़ने में बहुत होशियार थी; तो मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई में आने वाली परेशानी को ही दूर कर दिया। वो मेरे लिए एक साइकिल खरीद कर ले लाए, और तब मैं अपने गांव की पहली लड़की थी, जो महाविद्यालय में पढ़ने गईं। मेरे माता-पिता ने मुझे स्नातकोत्तर तक की उच्च शिक्षा प्रदान की।,,,,,,
आज भी गांवों में कई लोग पुरानी विचारधारा के हैं। वो अक्सर अपनी लड़कियों को बहुत सारे कायदों- कानून और नियमों में बांध देते हैं। हमारे माता-पिता ने हम पर कभी भी कोई बंदिशें नहीं थोपी। उन्होंने हमसे कभी नहीं कहा कि तुम एक लड़की हो, तुम ऐसा मत करो, वैसा मत करो। यहां मत जाओ, वहां मत जाओ।,,,,,
पिताजी के देहांत के बाद भी हमारी माता जी ने हम बहनों को हर कार्य में दक्ष और निपुण बनाया। और हमें स्वाभिमान से जीना सिखाया।,,,,,,,
मेरे माताजी और पिताजी अक्सर कहते थे। "जीवन में हमेशा कर्मप्रधान बनो। कभी भी किसी के बारे में बुरा मत सोचो। अपने हर सपने को पूरा करने की हर संभव कोशिश करो। यदि तन-मन से मेहनत करोगे तो एक दिन सफलता अवश्य ही तुम्हारे कदम चूमेगी"।,,,,
जीवन में आने वाले संघर्षों और चुनौतियों का सामना करना मैंने अपने माता-पिता से ही सीखा है, और उन्हीं के परवरिश और संस्कार की वजह से आज मैं एक सफल और कुशल गृहणी हूं, और अपने परिवार जनों की बेहद प्रिय हूं। साथ ही मैं बच्चों को सिलाई सिखाती हूं। और आज मैं एक आत्म-निर्भर महिला भी हूं। 


स्वरचित: मंजू बिष्ट,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।



कविता: चोखा लेखन- 17

जेठ मास की,

तपती गरमी ने,

मजदूरों को,

किया बदहवास,

गोदी में है बालक,

सिर पर गठरी,

रोड़ पर निकले,

पैदल चलकर,

छाले पड़े पैरों में,

उफ्फ तक नहीं की,

ठानकर मन में,

परिवार सहित,

वो सब मीलों चले,

ना ही थके ना हारे,

बस चलते रहे,

जेठ की गरमी ने,

मुसीबत बढ़ाई,

अपनी मंजिल में।

सब पहुंच गए।।

स्वरचित: मंजू बिष्ट, 
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

आदर्श वाक्य

"एक नवजात शिशु के लिए जितनी आवश्यक उसकी मां और उसके आंचल की छांव है, भारत की अनेकता को एकता के सूत्र में बांधने के लिए उतनी ही आवश्यक 'मातृभाषा हिंदी' है"।

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।



मनुष्यता: बाल कहानी

निहाल बार- बार अपनी मां से कह रहा था, "मां मुझे किसी के रोने की सी आवाज सुनाई दे रही है; मुझे लग रहा है, बाहर कोई है! आप एक बार दरवाजा खोलकर देखिए ना"! बाहर भयंकर मूलाधार बारीश हो रही थी; और ठंड भी काफी हो रही थी। राधिका का रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन बेटे के बार- बार कहने पर राधिका ने इस बार दरवाजा खोलकर बाहर देखा। घर के बाहर एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला बारीश में भीग रहा था। जो खुद को बारीश से बचाने के लिए किसी कोने की तलाश कर रहा था। और वह जाड़े से बुरी तरह से कांप रहा था। निहाल की जैसे ही उस पिल्ले पर नजर पड़ी, वह पिल्ले की तरफ भागा। निहाल को बाहर जाता हुआ देख राधिका बोली, "बेटा रुको! बाहर बहुत बारीश हो रही है, इस बारीश में बाहर निकलोगे तो भीग जाओगे और तबियत खराब हो जायेगी"। निहाल बोला,"मां देखो ना उस पिल्ले में भी तो प्राण है। उसे भी तो ठंड लग रही है। उसे गौर से देखो ना। वह हमसे मदद मांग रहा है। मैं इस बारीश में उसे बाहर भीगते हुए नहीं देख सकता"। निहाल की बातें सुनकर राधिका बोली! " तुम दो मिनट रुको, मैं छाता लेकर आती हूं"।.... निहाल छाता लेकर बाहर गया उसने पिल्ले को उठाया और उसे अंदर ले आया। निहाल ने पिल्ले को कपड़े से अच्छी तरह से पोंछ कर सुखा दिया। तब तक राधिका एक बर्तन में गुनगुना सा दूध बनाकर ले आई। निहाल ने उस पिल्ले को दूध पिलाया, और फिर एक टोकरी में कपड़ा बिछाकर उस पिल्ले को बैठा दिया। अपने बेटे के मन में उस पिल्ले के लिए ममता देखकर राधिका ने अपने बेटे को गले से लगा लिया।


स्वरचित मंजू बिष्ट,
गाजियाबाद,
उत्तर प्रदेश।