जेठ मास की,
तपती गरमी ने,
मजदूरों को,
किया बदहवास,
गोदी में है बालक,
सिर पर गठरी,
रोड़ पर निकले,
पैदल चलकर,
छाले पड़े पैरों में,
उफ्फ तक नहीं की,
ठानकर मन में,
परिवार सहित,
वो सब मीलों चले,
ना ही थके ना हारे,
बस चलते रहे,
जेठ की गरमी ने,
मुसीबत बढ़ाई,
अपनी मंजिल में।
सब पहुंच गए।।
स्वरचित: मंजू बिष्ट,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
Very nice 👍
ReplyDeleteThank you 😊
ReplyDeleteसत्य वचन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteNice
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