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मनुष्यता: बाल कहानी

निहाल बार- बार अपनी मां से कह रहा था, "मां मुझे किसी के रोने की सी आवाज सुनाई दे रही है; मुझे लग रहा है, बाहर कोई है! आप एक बार दरवाजा खोलकर देखिए ना"! बाहर भयंकर मूलाधार बारीश हो रही थी; और ठंड भी काफी हो रही थी। राधिका का रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन बेटे के बार- बार कहने पर राधिका ने इस बार दरवाजा खोलकर बाहर देखा। घर के बाहर एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला बारीश में भीग रहा था। जो खुद को बारीश से बचाने के लिए किसी कोने की तलाश कर रहा था। और वह जाड़े से बुरी तरह से कांप रहा था। निहाल की जैसे ही उस पिल्ले पर नजर पड़ी, वह पिल्ले की तरफ भागा। निहाल को बाहर जाता हुआ देख राधिका बोली, "बेटा रुको! बाहर बहुत बारीश हो रही है, इस बारीश में बाहर निकलोगे तो भीग जाओगे और तबियत खराब हो जायेगी"। निहाल बोला,"मां देखो ना उस पिल्ले में भी तो प्राण है। उसे भी तो ठंड लग रही है। उसे गौर से देखो ना। वह हमसे मदद मांग रहा है। मैं इस बारीश में उसे बाहर भीगते हुए नहीं देख सकता"। निहाल की बातें सुनकर राधिका बोली! " तुम दो मिनट रुको, मैं छाता लेकर आती हूं"।.... निहाल छाता लेकर बाहर गया उसने पिल्ले को उठाया और उसे अंदर ले आया। निहाल ने पिल्ले को कपड़े से अच्छी तरह से पोंछ कर सुखा दिया। तब तक राधिका एक बर्तन में गुनगुना सा दूध बनाकर ले आई। निहाल ने उस पिल्ले को दूध पिलाया, और फिर एक टोकरी में कपड़ा बिछाकर उस पिल्ले को बैठा दिया। अपने बेटे के मन में उस पिल्ले के लिए ममता देखकर राधिका ने अपने बेटे को गले से लगा लिया।


स्वरचित मंजू बिष्ट,
गाजियाबाद,
उत्तर प्रदेश।

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