*जिंदगी* ,,,, 😘, मैं अक्सर खोजती हूं अस्तित्व अपना,,कभी अपनों, कभी गैरों के बीच,,, लेकर तराजू तोलती हूं, रखकर कर्मों को अपने,,,,तो पाती हूं पलड़ा कभी यहां हल्का तो कभी वहां भारी,,,, सोचती हूं अक्सर,,,, अनेक अक्श की एक ही तो शख्स हूं मैं,,, ममता, करूणा, प्यार, दुलार लुटाती हूं सभी में समान,,,, फिर क्यों??? इन पलड़ों में समानता नहीं आती,,,,क्या यही जिंदगी है??,,,या संग चलते हैं प्रारब्ध के हिसाब- किताब,,,🤔
स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।
25/03/2022
*जिंदगी* ❤️,,,,,, जिंदगी तू बेहद खूबसूरत है।😘,,,,,कमी बस हम में है, कि हमें जीने का सलीका भी नहीं आता।😊,,,, मैं भी मानती हूं,कि एक सुखी और मस्त जीवन के लिए धन आवश्यक है।,,, मेहनत, लगन और इमानदारी से हम सुखी और मस्त जिंदगी हासिल कर सकते हैं। 👍😊,,,, लेकिन!!!🤔 ज्यों ही छल- कपट, राग-द्वेश और मिथ्या वाकपटुता हमारी जिंदगी में प्रवेश करती हैं,,, तो,,,, घर में समस्त सुख- सुविधाओं के होते हुए भी हम एक व्यर्थ और बोझिल सी जिंदगी जी रहे होते हैं।,,,, इसलिए जिंदगी में धन के साथ स्वस्थ और प्रसन्न मन बेहद जरूरी है।,,,, है ना?✍️
स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
28/3/2022
जिंदगी ❤️,,,, एक लंबे अरसे बाद मैं सुकून से रूबरू हुई।,,,, जिसे ढूंढ रही थी मैं कभी रिस्तों में, कभी सुविधाओं में, तो कभी पूजा घर,,, 🤔 और कभी- कभी तो ढूंढने- ढूंढते होश ही नहीं रहता, कि मैं ढूंढ रही हूं क्या और किधर- किधर???..... बीत गया जब उम्र का एक पड़ाव।😔,,,, तब जाकर सुकून से मुलाकात हुई।😀,,,, मेरा अनुभव तो ये कहता है, कहीं नहीं मिलेगा सुकून जहां में,,,, तू खुद में ढूंढ और मन से ढूंढ,,,, दीदार होगा सुकून का तुझे भी ,,,, तेरे ही अंदर।😘👍😊😊✍️
29/3/2022
जिंदगी ❤️,,,, निकल पड़ी हूं जिंदगी, तुझे संवारने और खुबसूरत बनाने। 😘,,, सूरत का क्या है!!🤔,,,, बढ़ती हुई उम्र के साथ इस सूरत ने धीरे- धीरे ढह जाना है।🙄...✍️
स्वरचित मंजू बोहरा बिष्ट।
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।
30/3/2022
जिंदगी ❤️,,,,अपना एक सशक्त अस्तित्व बनाने के लिए हम लोग हर पल जद्दोजहद में लगे रहते हैं।,,,,, हैं, ना,,,😊 एक फैमस या आत्मनिर्भर महिला का ही अस्तित्व सशक्त हो सकता है,,,🤔 यह जरूरी नहीं है।,,,,,, व्यवहार, वाणी, सेवा और आर्थिक मदद से भी हम अपने परिवारिक और सामाजिक जीवन में अपने सशक्त अस्तित्व का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।👍,,,
स्वरचित मंजू बोहरा बिष्ट,
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।
31/3/2022
जिंदगी,,,,🤔 आखिर ऐसा क्यों होता है, कि कमजोर आर्थिक स्थिति या अन्य छोटी सी कमी पाते ही,, उसे तूल बनाकर हमारे अपने हमारा अस्तित्व, मान- सम्मान को रौंद देते हैं।,,, तब हम सिर्फ.... कसमसाते और झुंझलाते रह जाते हैं।!!!,,,, आखिर क्यों???,, और कब तक सहन करेगी??? ✍️
स्वरचित मंजू बोहरा बिष्ट,
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।
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