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नारी की महिमा: कविता।-18

ममता- करूणा, क्षमा- त्याग की, नारी है अद्भुत मिसाल।

नवल रूप में अवतरित होकर, रच- बस जाती है ससुराल।।

नित्य नए उमंग से तू, विहान की इब्तिदा करती है।

मन- वचन से शील स्नेहिल तू, बिन मोल चाकरी करती है।।

कतरा- कतरा खुद को बांटती, घर आफिस संभालती है।

घर-द्वार सजे, संसार बसे, तू अन्नपूर्णा रूप धर लेती है।।

क्षमा- त्याग के अलंकरण से, तू हर दुःख को सह जाती है।

ज़ुल्म हद से बढ़ जाए जब, तब दुर्गा स्वरूप बन जाती है।।

कभी जननी, कभी भगिनी, कभी नंदिनी तो कभी प्राणप्रिया।

अवतरित हुई जिस रुप में तू, हर रूप में तूने त्याग किया।।

दुश्वार आलम जब भी आए, कभी अधीर ना होती है।

दुर्गा, अहिल्या, लक्ष्मी, इंदिरा से, तू प्रेरणा लेती है।।

साक्षर- कर्मठ आज की नारी, और वीरा- स्वाभिमानी।

किरण, ऐश्वर्या, साइना सा अस्तित्व, पाने की अब सबने ठानी।।

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

सर्वाधिकार सुरक्षित।

2 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता

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  2. बढ़िया

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