मैं एक नवोदित रचनाकार हूं; मैं कोशिश कर रही हूं, कि मैं अपने शब्दों को एक माला में पिरोने की। और उस माला को एक साकारात्मक और प्रेरणास्त्रोत रचनाओं का रूप देने की। यदि मेरी रचनाओं में कोई त्रुटियां होती हैं तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं।
देख जटा में गंगा की धार,
गले में लिपटा नागों का हार।
तेरी इसी छवि पर भोले,
मैं हुई बलिहार ।।
स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
No comments:
Post a Comment