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कान्हा ज्यू को प्रथम पत्र

 हे मेरे कान्हा, 

कैसे हैं आप, मैं यह नहीं पूछूंगी। क्योंकि मुझे पता है आप जगत के पालनहार हैं, तो! बढ़िया ही होंगे। मुझे शरणागति चाहिये भगवन, पर कैसे ? 

मैं तो बचपन से ही क्रोध, लोभ और मद की मटकी अपने सिर पर रखकर फ़िर रही हूं😞,,, हाथों के सहारे बिना चलने पर यह मटकी नहीं गिरती, मैं जितना तेज भागती हूं यह मटकी उतनी ही स्थिरता से सिर पर टिकी रहती है,,,सच कहूं  कान्हा अब मेरी गर्दन थक गई है। इसलिए कह रही हूं🥺,,,अब यह बोझ मुझसे नहीं ढ़ोया जाता 😢,,, please एक बार आओ ना, आकर यह मटकी फोड़ दो। और मुझे एकदम खाली और हल्का कर दो।

स्वरचित

प्रार्थनीय

मंजू बिष्ट, गाजियाबाद

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