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शरारती टिंकू: बाल कविता।

पढ़- पढ़ कर थक गए टिंकू भाई।

चूहे ने पेट में धमाल मचाई।।

टिंकू को मामा की याद है आयी।

मामा से की थी दस रुपए कमाई।।

दस रुपया देखकर जी ललचाया।

आहा! चटपटा कुरकुरा याद आया।।

पर! मम्मी कुरकुरा खाने ना देंगी।

पापा से भी डांट मिलेगी।।

कुरकुरा मिल जाए टिंकू सोचे।

अचानक गिरा, धम्म से बेड के नीचे।।

धम्म! की आवाज सुन मम्मी दौड़ी। 

मम्मी के पीछे, चाची- ताई दौड़ी।।

हाये! टिंकू गिर गया नीचे।

लिया गोदी में ममता से सींचे।।

ताई ने टिंकू की गाल थपथपाई।

जा बेटा खेल, चाची ने दी दुहाई।।

टिंकू की जैसे लॉटरी लग गई।

बल्ले- बल्ले नाचे टिंकू भाई।।

संग दादी के वो निकल गया।

दस रुपए का उसने कुरकुरा लिया।।

कुरकुरा देखकर मुस्कान है छाई।

शरारती टिंकू ने ली अंगड़ाई।।


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट 

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश। 

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