थोड़ा- थोड़ा बुद्धू, थोड़ा होशियार।
हंसी- ठिठोली से मुझे बड़ा प्यार।।
कभी छोटी गलती पर बरस मैं जाती।
कभी बिन मोल के स्नेह लुटाती।।
संघर्षों ने मुझे मजबूत बनाया।
कर्मठता ने स्वाभिमान जगाया।।
कई दिनों से मैं सोच रही हूं।
कर्मों की गठरी लादे क्यों फ़िर रही हूं।।
कर्मो को लेकर मैं तोलने बैठी।
देखा,, दोनों पलड़ों की बात अनूठी।।
समझ में नहीं आयी मुझे ये बात।
कर्मों ने दी या तराजू ने मुझे मात।।
गहन परिक्षण किया मैंने अपना।
लगा,,,ज़रूरत है मुझे खुद मैं खुद को ढूंढना।।
अनेकों अक्श की, मैं एक ही शख्स हूं।
कई जन की प्रिय मैं, कई जन की अप्रिय भी हूं।।
खट्टे- मीठे अनुभूतियों का, मेरा ये संसार।
मेरा व्यक्तित्व ही, मेरे अस्तित्व का आधार।।
सादगीपूर्ण है जीवन मेरा, मस्तमौला व्यवहार।
लक्ष्मी, गौरा, दुर्गा में, समाया मेरा किरदार।।
स्वरचित मंजू बोहरा बिष्ट,
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।
👏👏👏👏
ReplyDeleteHmm,,,der se shii, pr jaag gyii hu,, haushla kbhii n kbhi to kamyabii dega hi,,,
Deleteखुबसुरत लिखा है🙏🙏👍
DeleteTrue line,, nice,,, mehant karti raho,,,ek din avashya kamyab hogii..
ReplyDelete😘
DeleteVery true
ReplyDeleteThank you ☺️💕
DeleteWha wha kya baat hai 👍👌
ReplyDelete🥰
DeleteWha wha kya baat hai 👍👌
ReplyDeleteVery nice 👌👌
ReplyDeleteवाह
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