Translate

Followers

गोदान उपन्यास का कुमाऊनी रूपांतरण

'गोदान' उपन्यास प्रेमचंद ज्यू की सबूं है भल रचना छौ। यौ उपन्यास मा प्रेमचंद ज्यू'ल गौ और शहर'क रौण- बसण कै एक साथ मिलैबेर भलि भली कै लिख रखौ। गोदान उपन्यास हमर देश'क आजाद हुण टैम'क कहानी छू। 'गोदान' उपन्यास हमर देश'क किसान कि आत्मकथा छू। गोदान मा होरी नाम'क एक किसान' के कहानी छू, जौ जीवनभर खूब मेहनत करौ, कष्ट सहौ, पर वीकै कभै लै मेहनत'क फल न्हैं मिलण।

(भाग१)

होरी'ल द्वीनों बल्दों कै सन्नी- पाणी द्यी बेर आपणी सैणी थै कुणों- गोबर कै गन्न गोड़न भेज द्ये। मैं पत्त न्हैं कब तक लौटुल। जरा म्येरी लठ्ठी द्यी द्यै।

धनिया'क द्वीनों हाथ मोव'ल सनी रौछी। उ मोव'क कंड थापबेर औनेछी। उ कौणी- सुणौ, थ्वाड़ चहा- पाणी' तो पी ल्यौ, यैसि लै जल्दी कै है रै?

 होरी ल आपणी चिम्वाड़ पड़ी कपाव मा गांठ मार बेर कुणौ- तुकै चहा पाणी है रै, मैं कै यौ फिकर लागि रै यदि अबेर है जालि त मालिक दगड़ भेंट न्हैं होलि। उं नाण- ध्वैन और पुज करण लागला' त घंटों बैठियै बीत जाल।

"तबै त कुण लागि रियूं थ्वाड़ चहा- पाणी पी जाऔ। और आज न्हैं जाला'त कौन सा हर्ज है जाल। पोरदिन त जाई रैछा।"

"तू जो बात कै न्हैं समझनी, उ में टांग किलै अणौछी भई! म्येरी लठ्ठी द्यी द्यै और आपुण काम द्यैख। यौ इसियै मिलण- जुलण'क परसाद छू कि आजि तक जान बची रै, न्हैं  कैं पत्त न्हीं लागण कां हुणी ग्यां। गौं मा इतुक मंख्यी छैं, कैक पै बैदखली न्हैं ऐ, कैक पै कुड़की न्हैं ऐ। जब दुसरां क खुटां क तली आपणी गर्दन दबी छू, त उन खुटां कै मुसारन मा भलाइ छू।"

धनिया क व्यवहार खट-खट छी। उ क विचार छी हमौ ल जमींदार क खेत जोति रखी, त ऊ आपुण लगान त ल्यौ लै। वीक खुशामद किलै करूं, वीक तलू किलै मुसारूं। उसिक आपुण ब्या क बाद यूं बीस बर्षों में उकै भलि कै पत्त लागि गौछी कि चाहे कतुकै आपुण खर्चों में कमी कर ल्यौं, चाहे कतुकै कम खौं, कतुकै फाटि पुराण पैरौं, कतुकै कंजूसी कर ल्यौं; पर यौ लगान बै मुक्ति मिलण मुश्किल छौ। फिर लै ऊं हार न्हैं माणेछी, यौ बात पर सेणी- मैंस म आये दिन ठसका-ठुसकी है जांछी।

उनर छः नाणों बै अब तीन नाण ज्यूंन छी, एक च्यल गोबर कोई सोला साल ल और द्वी चेली सोना और रूपा, बार और आठ साल की। तीन च्याल नाण छना मरग्यान। वीक मन आज लै कौछी अगर उनेरी दवा- पाणी हुणी त उं बच जांछी; पर उ एक रुपैं क लै दवै न्हैं मगें सकि।

वीक उमर आजि कै छू। छत्तीसों त लागि रौ; पर सबै बाऊ स्यात हैगीं, मुखड़ी में चिम्वाड़ पड़ गी, पुरै शरीर बुड़ जस ह्वेगौ। वीक सुंदर गेरू रंग काउ है गौ, आंखों ल लै अब कम दिखीणौं। यौ पेट क फिकर ल कभै जीवन क सुख न्हैं मिलि। नानि उमर क अमिट बुढ़ापा देखि बेर वीक आत्मसम्मान लै उदेखी गैछी। जो घर-बार मा पेट क ल्ही रवाट लै न्हीं मिलण, वीक ल्ही इतुक खुशामद किलै? यौ हालात में वीक मन हर दफै बगावत करै छी। और द्वी-चार डांट डपट सुण बेर वीक अकल सही है जैछी।

वील हार बेर होरी क लठ्ठी, पंखी, ज्वात, पगड़ी और तम्बाकू क बटू लै बेर सामणी मा पटक द्यी।

 होरी वीक तरफ आंखों कै नचै बेर कुणौ- सौरास जांण छू कै, जो पांचों ....लै रैछै?  सौरास मा लै कोई ज्वान साई- साऊ त बैठि न्हैं, जिनकै जै बेर द्यैखौं।

होरी क कावौ- काव, दुबल-पतल मुखड़ी मा मुल-मुली हंसी खिल गै।








1 comment: