Translate

Followers

कहानी: पढ़ेगा तभी बढ़ेगा इंडिया

मालती सुबह से ही कोशिश कर रही थी, कि घर का सारा काम जल्दी से जल्दी निपट जाए और वह स्कूल में पहुंच जाए। आज एक अलग ही उत्साह था उसके मन में। वह अपनी जिंदगी में एक नया अध्याय जोड़ने जा रही थी। लगभग एक बजे के आसपास घर के सभी कामों को निपटा कर मालती स्कूल जाने के लिए निकली, बाहर देखा तो अभी भी कोहरे की चादर फैली हुई थी। और ठंड भी बहुत पड़ रही थी। उसने अपनी स्कूटी पकड़ी;,,,,,, और थोड़ी ही देर में वह एक सरकारी स्कूल में पहुंच गई।

स्कूल में केवल तीन ही कमरे थे। एक ही कमरे में दो कक्षाएं साथ- साथ चल रही थी। उसने अध्यापिका महोदया से इजाजत ली और कक्षा में प्रवेश किया, उसने प्रधानाचार्या जी से मिलने के लिए निवेदन किया; अध्यापिका महोदया बोली! "प्रधानाचार्या जी आज छुट्टी पर हैं। मैं आपकी कुछ मदद कर सकती हूं"?,,,,,,  मालती ने उन्हें अपना पूरा परिचय दिया और स्कूल में आने का प्रयोजन बताया,,,,, उसने कहा कि " महोदया मैं एक सामान्य परिवार की महिला हूं; मेरी बहुत इच्छा है कि मैं भी समाज सेवा में अपना योगदान दूं।,,,, पर अपनी आर्थिक परिस्थिति की वजह से मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती हूं।,,,, महोदया मैं बड़ा काम तो नहीं कर सकती,,,, पर हां,,,, मैं एक बच्चे की पढ़ाई-लिखाई में अपना सहयोग दे सकती हूं"।
मेरी बात सुनकर अध्यापिका महोदया बोली, "यह तो बहुत ही नेक और पुण्य का काम है। वैसे सरकार और NGO से मदद मिलती तो है; लेकिन फिर भी हमारे देश में गरीबी इतनी ज्यादा है कि कई बार होशियार होने के बावजूद भी कई बच्चे आगे नहीं पढ़ पाते हैं। यदि इन बच्चों की मदद के लिए हमारा समाज भी आगे बढ़ता है, तो हमारे देश के सभी गरीब बच्चों का भविष्य बेहतर हो जायेगा"। उसके बाद अध्यापिका महोदया ने मालती को कक्षा ३ के बच्चों से मिलाया और बोली......"बच्चो आंटी जी किसी एक बच्चे की पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी लेना चाहती हैं। कोई बच्चा तैयार है"? इतना कहते ही सारे बच्चे चिल्लाने लगे "आंटी जी मैं तैयार हूं; 'मुझे पढ़ा दो', 'मुझे पढ़ा दो,",,,,, मालती के लिए अब उन बच्चों में से एक बच्चे को चुनना बहुत मुश्किल काम था।
कुछ देर सोचने के बाद मालती अध्यापिका महोदया से कहने लगी। कि ,"महोदया बच्चों की बातें सुनकर मेरे भीतर क्या चल रहा है, इसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। मैं सिर्फ इतना ही कहुंगी, कि काश! मैं इतनी सक्षम होती।,,,,, मुझे इन बच्चों में से एक को तो चुनना ही है। महोदया जो बच्चा पढ़ने में मेहनती और जरूरतमंद है, मैं उस बच्चे की जिम्मेदारी लेती हूं"। अध्यापिका महोदया बोली, " जी ठीक है,,,,, प्रिया और सकीना कक्षा में सबसे मेहनती बच्चियां हैं। दोनों की आर्थिक स्थिति भी सबसे दयनीय है। आप इन दोनों में से किसी एक बच्ची को पढ़ा सकती हैं।"
अध्यापिका महोदया ने उन दोनों बच्चियों को आगे बुलाया,,,,, दोनों ही बच्चियों ने आकर मालती को अपनी नन्ही बाहों से कसकर पकड़ लिया।,,,,, उन दोनों बच्चियों का मासूम चेहरा देखकर मालती ने दोनों बच्चियों की पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी ले ली।,,,,
२०१७  में मालती ने दो बच्चियों से अपना यह सफर शुरू किया। मालती को देख कर उसकी कई सहेलियां भी उससे प्रेरित हुईं, और उसके साथ जुड़ गई। और आज वह अपनी सहेलियों के साथ मिलकर ३५० से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई- लिखाई में मदद कर रही है। और साथ ही वह गरीब लड़कियों को निःशुल्क सिलाई-कढ़ाई और फैशन डिजाइनिंग का कोर्स सिखाती है।,,,,,,
मालती दिल से चाहती है कि ये सभी बच्चें शिक्षित होकर एक दिन अपने पैरों में खड़े हो जाएं, और साथ ही अपने माता- पिता का एक मजबूत सहारा बनें।

स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
मूल निवासी- हल्द्वानी नैनीताल।
उत्तराखंड।

1 comment: