आज भी सीमा और राजेश के बीच में बहस छिड़ गई। सीमा गुस्से से तमतमाते हुए बोली, " मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, तनख्वाह मिलते ही कुछ रुपए मुझे दे दिया करो। पर तुम्हारे हाथ से एक कौड़ी नहीं निकलती। मैं अपने क्रीम- पाउडर के लिए रूपए नहीं मांग रही। पिछले तीन महीने से बच्चों की फीस जमा नहीं हुई है। आज सुबह स्कूल से फोन आया था कि १५ तारीख़ तक फीस जमा नहीं हुई तो बच्चों का नाम काट दिया जाएगा। तुम्हीं बता दो, मैं किसके आगे जाकर हाथ फैलाऊ"।,,,,,
सीमा की बातें सुनकर राजेश झल्लाकर बोला "हां,,, हां,,,ठीक है। मैं कल इंतज़ाम करके देता हूं"।,,,,,
इंतजाम करके?,,,,, तुम्हें तो तनख्वाह मिल चुकी है ना।,,,,, सीमा की बात पूरी भी नहीं हुई थी, राजेश नथुने फुलाकर बोला! "मैं अय्याशी करने नहीं जा रहा हूं, सारी तनख्वाह तुम्हीं लोगों पर खर्च होती है। पिछले महीने जो उधार लिया था, वो लौटाना भी तो था। इस महीने की तनख्वाह उधार चुकाने में निकल गई।
यह सुनते ही सीमा धम्म से जमीन पर बैठ गई।,,,,,, उन दोनो की बहस सुनकर बच्चे भी जाग गए थे।,,,,,बहस को बढ़ते हुए देखकर राजेश उठा, उसने नीचे दरी बिछाई और जाकर सो गया। राजेश भी अच्छी तरह से जानता था कि सीमा जो कुछ कह रही है ठीक कह रही है। लेकिन हालात के सामने वह भी मजबूर था।,,,,,,
दूसरे दिन राजेश ने दोस्तों से मदद मांगी, पर इस बार सभी ने उसे टाल दिया। क्योंकि उसने पहले के ही रूपये ही नहीं लौटाए थे।,,,,,
सप्ताह बीतने को था, राजेश ने अभी तक फीस जमा नहीं की थी। सीमा को बच्चों के भविष्य की चिंता खाएं जा रही थी। काफी देर विचारों के उधेड़बुन में उलझने के बाद उसने निर्णय लिया। सिर्फ राजेश की कमाई से घर चलना बहुत मुश्किल है। सुख शांति वाली जिंदगी चाहिए तो उसे भी काम करना होगा।,,,,, वह आज ही राजेश से बात करेगी।,,,
रात का खाना खाने के बाद सीमा राजेश से बोली, "राजेश मैं सोच रही थी कि मैं भी कुछ काम कर लूं? ताकि घर,,,,,,
सीमा की बात पूरी भी नहीं हुई थी, राजेश बोल पड़ा! "पहले घर और बच्चों को ढंग से संभाल लो"।,,,,,सीमा ने फिर साहस जुटा कर कहा ! "तुम्हारे और बच्चों के जाने के बाद मैं खाली तो रहती हूं"।,,,,,,, राजेश ने अपनी भौंह में गांठ मारते हुए कहा, "ये हमारा पहाड़ नहीं, परदेश है यहां दो मिनट नहीं लगते, बच्चे गायब होने में। तुम नौकरी करोगी तो बच्चों को कौन संभालेगा"?,,,,, सीमा ज़िद पकड़ चुकी थी। वह फिर बोली, "मैं वहीं काम करूंगी, जिससे कि मैं बच्चों को भी देख सकूं, तुम हां तो बोलो"। राजेश बोला, "तुमने ठान ही लिया है तो करो,,,,
अगले ही दिन से सीमा जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाती और अखबार में ढूंढ- ढूंढ कर इंटरव्यू दे आती।,,,,, कई दिन बीत जाने के बाद भी सीमा को कहीं नौकरी नहीं मिली। सीमा के पास जो बचत के तीन-चार सौ रूपए थे, वो भी खत्म हो चुके थे।,,,,,
सीमा ने केवल १२वी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी। जब वह १२ कक्षा में पढ़ रही थी, तब राजेश का रिश्ता आया। लड़का दिल्ली में किसी कंपनी में सुपरवाइजर है और घर-परिवार से संपन्न है, यह जानने के बाद सीमा के मां-बाबा ने रिस्ते के लिए हां कह दिया। सीमा बेहद सुन्दर और सुशील थी, वह लड़के को पहली ही नज़र में पसन्द आ गई; और चट मंगनी पट ब्याह हो गया।,,,,,,
दिल्ली में सीमा का बिल्कुल भी मन नहीं लगा। बड़े शहर के उस एक कमरे के घर में उसका दम घुटने लगा, बात-बात पर मकान मालिक की टोका-टाकी उसके बर्दाश्त से बाहर थी। गर्मी में लू के थपेड़े, खारा पानी और घर के आगे से बहती गंदे नाले की बदबू से वह बेहद परेशान हो गई थी। उसे लगने लगा था कि दिल्ली जैसे महानगरों की जिंदगी सिर्फ एक खूबसूरत छलावा है।
उसे रह- रह कर अपने पहाड़ों की याद आती थी। वह तरस गई थी अपने पहाड़ों के खुले- खुले घर, बड़ा सा आंगन, ताज़ी हवा, मीठा पानी, भरे- भरे पेड़, अपनों का प्यार पाने के लिए। और अपनोंं को याद करते ही उसकी आंखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगती। उसका मन करता था, वह चीख-चीख कर रोएं। घर से बाहर आवाज ना चली जाय यह सोचकर वह अक्सर अपने दुपट्टे को मुंह में ठूंस लेती, और बिलख- बिलख खूब रोती। कई घंटे बीत जाने के बाद वह खुद को संभालत, और फिर रोजमर्रा के काा में लग जाती। और इसी तरह जिंदगी बसर हो रही थी।,,,,,
आज एक सप्ताह बीतने को था राजेश ने फीस के रुपए नहीं दिए थे। अंत में मजबूर होकर सीमा ने अपनी शादी की अंगूठी निकाली और राजेश के हाथ में रखते हुए बोली। इस अंगूठी को बेच दीजिए। क्योंकि बिजली का बिल और किराया भी तो देना है।,,,,, राजेश ने झट से अंगूठी ले ली; लेकिन बाहर निकलते ही तंज़ कसा ! " याद रखना!,,,, यह अंगूठी तुम मुझे दे रही हो"! और घर से बाहर निकल गया,,,,,। सीमा बुझे हुए मन से रसोई की ओर चल दी।,,,,,,
इंतजाम करके?,,,,, तुम्हें तो तनख्वाह मिल चुकी है ना।,,,,, सीमा की बात पूरी भी नहीं हुई थी, राजेश नथुने फुलाकर बोला! "मैं अय्याशी करने नहीं जा रहा हूं, सारी तनख्वाह तुम्हीं लोगों पर खर्च होती है। पिछले महीने जो उधार लिया था, वो लौटाना भी तो था। इस महीने की तनख्वाह उधार चुकाने में निकल गई।
यह सुनते ही सीमा धम्म से जमीन पर बैठ गई।,,,,,, उन दोनो की बहस सुनकर बच्चे भी जाग गए थे।,,,,,बहस को बढ़ते हुए देखकर राजेश उठा, उसने नीचे दरी बिछाई और जाकर सो गया। राजेश भी अच्छी तरह से जानता था कि सीमा जो कुछ कह रही है ठीक कह रही है। लेकिन हालात के सामने वह भी मजबूर था।,,,,,,
दूसरे दिन राजेश ने दोस्तों से मदद मांगी, पर इस बार सभी ने उसे टाल दिया। क्योंकि उसने पहले के ही रूपये ही नहीं लौटाए थे।,,,,,
सप्ताह बीतने को था, राजेश ने अभी तक फीस जमा नहीं की थी। सीमा को बच्चों के भविष्य की चिंता खाएं जा रही थी। काफी देर विचारों के उधेड़बुन में उलझने के बाद उसने निर्णय लिया। सिर्फ राजेश की कमाई से घर चलना बहुत मुश्किल है। सुख शांति वाली जिंदगी चाहिए तो उसे भी काम करना होगा।,,,,, वह आज ही राजेश से बात करेगी।,,,
रात का खाना खाने के बाद सीमा राजेश से बोली, "राजेश मैं सोच रही थी कि मैं भी कुछ काम कर लूं? ताकि घर,,,,,,
सीमा की बात पूरी भी नहीं हुई थी, राजेश बोल पड़ा! "पहले घर और बच्चों को ढंग से संभाल लो"।,,,,,सीमा ने फिर साहस जुटा कर कहा ! "तुम्हारे और बच्चों के जाने के बाद मैं खाली तो रहती हूं"।,,,,,,, राजेश ने अपनी भौंह में गांठ मारते हुए कहा, "ये हमारा पहाड़ नहीं, परदेश है यहां दो मिनट नहीं लगते, बच्चे गायब होने में। तुम नौकरी करोगी तो बच्चों को कौन संभालेगा"?,,,,, सीमा ज़िद पकड़ चुकी थी। वह फिर बोली, "मैं वहीं काम करूंगी, जिससे कि मैं बच्चों को भी देख सकूं, तुम हां तो बोलो"। राजेश बोला, "तुमने ठान ही लिया है तो करो,,,,
अगले ही दिन से सीमा जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाती और अखबार में ढूंढ- ढूंढ कर इंटरव्यू दे आती।,,,,, कई दिन बीत जाने के बाद भी सीमा को कहीं नौकरी नहीं मिली। सीमा के पास जो बचत के तीन-चार सौ रूपए थे, वो भी खत्म हो चुके थे।,,,,,
सीमा ने केवल १२वी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी। जब वह १२ कक्षा में पढ़ रही थी, तब राजेश का रिश्ता आया। लड़का दिल्ली में किसी कंपनी में सुपरवाइजर है और घर-परिवार से संपन्न है, यह जानने के बाद सीमा के मां-बाबा ने रिस्ते के लिए हां कह दिया। सीमा बेहद सुन्दर और सुशील थी, वह लड़के को पहली ही नज़र में पसन्द आ गई; और चट मंगनी पट ब्याह हो गया।,,,,,,
दिल्ली में सीमा का बिल्कुल भी मन नहीं लगा। बड़े शहर के उस एक कमरे के घर में उसका दम घुटने लगा, बात-बात पर मकान मालिक की टोका-टाकी उसके बर्दाश्त से बाहर थी। गर्मी में लू के थपेड़े, खारा पानी और घर के आगे से बहती गंदे नाले की बदबू से वह बेहद परेशान हो गई थी। उसे लगने लगा था कि दिल्ली जैसे महानगरों की जिंदगी सिर्फ एक खूबसूरत छलावा है।
उसे रह- रह कर अपने पहाड़ों की याद आती थी। वह तरस गई थी अपने पहाड़ों के खुले- खुले घर, बड़ा सा आंगन, ताज़ी हवा, मीठा पानी, भरे- भरे पेड़, अपनों का प्यार पाने के लिए। और अपनोंं को याद करते ही उसकी आंखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगती। उसका मन करता था, वह चीख-चीख कर रोएं। घर से बाहर आवाज ना चली जाय यह सोचकर वह अक्सर अपने दुपट्टे को मुंह में ठूंस लेती, और बिलख- बिलख खूब रोती। कई घंटे बीत जाने के बाद वह खुद को संभालत, और फिर रोजमर्रा के काा में लग जाती। और इसी तरह जिंदगी बसर हो रही थी।,,,,,
आज एक सप्ताह बीतने को था राजेश ने फीस के रुपए नहीं दिए थे। अंत में मजबूर होकर सीमा ने अपनी शादी की अंगूठी निकाली और राजेश के हाथ में रखते हुए बोली। इस अंगूठी को बेच दीजिए। क्योंकि बिजली का बिल और किराया भी तो देना है।,,,,, राजेश ने झट से अंगूठी ले ली; लेकिन बाहर निकलते ही तंज़ कसा ! " याद रखना!,,,, यह अंगूठी तुम मुझे दे रही हो"! और घर से बाहर निकल गया,,,,,। सीमा बुझे हुए मन से रसोई की ओर चल दी।,,,,,,
दूसरे दिन फीस जमा करके सीमा अपनी सहेली राधा से मिलने चली गई। सीमा को अचानक अपने घर पर देखकर राधा बहुत खुश हुई। सीमा को देखते ही राधा ने सीमा को गले से लगा लिया। चाय- नाश्ता करने के बाद राधा सीमा से पूछती है, अब बता तेरा चेहरा इतना बुझा- बुझा सा क्यूं है, तब सीमा राधा से कहती है। क्या बताऊं यार राधा राजेश की तनख्वाह से घर की जरूरतें ही पूरी नहीं हो पाती हैं, कर्ज है कि दिन पर दिन बढता ही जा रहा है। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं। आगे बच्चों की पढ़ाई का खर्चा भी बढ़ रहा है, दिन पर दिन किराया भाड़ा, घर के खर्चे सब बढ़ रहें हैं। इसलिए मैं सोच रही हूं यार मैं भी कुछ काम करूं। इस बीच मैंने बहुत कोशिश भी की, पर कोई भी नौकरी नहीं मिली। मैं ज्यादा पढ़ी लिखी भी नहीं हूं, शायद इसलिए नौकरी नहीं मिल रही है।,,,,,
राधा अपने पति से बात करके देखना ना, वो मुझे कहीं-न-कहीं किसी काम पर अवश्य लगा देंगे।
सीमा की बात सुनकर राधा बोली, "एक काम है तो सही, पर क्या तू कर पायेगी ये काम"? राधा की सुनकर सीमा बोली, "तू बता तो सही क्या करनाहै"?
राधा बोली, कि माधो बता रहे थे उनकी मालकिन को एक रसोइया की जरूरत है। तू बेहद स्वादिष्ट खाना बनाती है, यदि तू हां कहे तो मैं तेरी बात कर सकती हूं। थोड़ी देर सोचने के बाद सीमा बोली, "ठीक है, मैं बनाउंगी खाना"।
राधा बोली,,,, "इस समय तो मेमसाब आफिस में होंगी। शाम को चलते हैंं; ठीक है"।,,,,,,सीमा, "बोली ठीक है"।
शाम को बच्चों को राधा के घर छोड़कर वो दोनों एक आलिशान बंगले में पहुंचते हैं, राधा ने दरवाजे की घंटी बजाई। दरवाजा एक ४०-४५ साल की महिला ने खोला। राधा बोली "नमस्ते मेमसाब,,,,, मैं माधो की घरवाली हूं। माधो बता रहे थे कि आपको एक कुक की जरूरत है। ये मेरी सहेली सीमा है। यह बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाती है। इसे काम की जरूरत है, इसीलिए मैंं इसे आपके पास ले आई। उस महिला का नाम शालिनी डबराल था, और वह एक वकील थी। शालिनी बोली, अंदर आओ,,,,,, सामने है रसोई। सीमा रसोईघर में गई उसने एक घंटेे के भीतर सब्जी, चटनी, रायता और चपाती सब तैैया कर दिया। मेमसाब को खाना बहुत पसंद आया और उन्होंने सीमा को ३००० रूपये महिने में नौकरी पर रख लिया। खाना बनाने का समय सुबह ९ बजे और शाम को ६ बजे बताया। यह समय सीमा के हक़ में भी ठीक था, और उससे भी अच्छी बात यह थी कि उसे काम घर के नजदीक मिल गया था। आज वह बहुत खुश थी। राजेश के घर आने पर सीमा ने राजेश को अपने काम के बारे में बताया, पर राजेश ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी।,,,,, और इसी तरह एक साल बीत गया।
राधा बोली,,,, "इस समय तो मेमसाब आफिस में होंगी। शाम को चलते हैंं; ठीक है"।,,,,,,सीमा, "बोली ठीक है"।
शाम को बच्चों को राधा के घर छोड़कर वो दोनों एक आलिशान बंगले में पहुंचते हैं, राधा ने दरवाजे की घंटी बजाई। दरवाजा एक ४०-४५ साल की महिला ने खोला। राधा बोली "नमस्ते मेमसाब,,,,, मैं माधो की घरवाली हूं। माधो बता रहे थे कि आपको एक कुक की जरूरत है। ये मेरी सहेली सीमा है। यह बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाती है। इसे काम की जरूरत है, इसीलिए मैंं इसे आपके पास ले आई। उस महिला का नाम शालिनी डबराल था, और वह एक वकील थी। शालिनी बोली, अंदर आओ,,,,,, सामने है रसोई। सीमा रसोईघर में गई उसने एक घंटेे के भीतर सब्जी, चटनी, रायता और चपाती सब तैैया कर दिया। मेमसाब को खाना बहुत पसंद आया और उन्होंने सीमा को ३००० रूपये महिने में नौकरी पर रख लिया। खाना बनाने का समय सुबह ९ बजे और शाम को ६ बजे बताया। यह समय सीमा के हक़ में भी ठीक था, और उससे भी अच्छी बात यह थी कि उसे काम घर के नजदीक मिल गया था। आज वह बहुत खुश थी। राजेश के घर आने पर सीमा ने राजेश को अपने काम के बारे में बताया, पर राजेश ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी।,,,,, और इसी तरह एक साल बीत गया।
सीमा बहुत ईमानदार मेहनती थी। सीमा की सादगी, उसके व्यवहार और उसके काम से शालिनी बहुत खुश थी। और निश्चिंत थी।,,,,,
सीमा के घर की आर्थिक स्थिति अब सुधरने लगी थी, और राजेश का चिड़चिड़ा स्वभाव भी बदलने लगा था।
शालिनी अक्सर सीमा से कहती। सीमा पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो। पढ़ाई में तुम्हारी मदद मैं करुंगी। शालिनी के बार-बार कहने पर सीमा ने इंद्रा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से बी.ए.की पढ़ाई शुरू कर दी। देखते ही देखते ६ साल बीत गए। इसी साल सीमा ने अंग्रेजी बिषय से एम ए की पढ़ाई पूरी की थी।
सीमा के घर की आर्थिक स्थिति अब सुधरने लगी थी, और राजेश का चिड़चिड़ा स्वभाव भी बदलने लगा था।
शालिनी अक्सर सीमा से कहती। सीमा पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो। पढ़ाई में तुम्हारी मदद मैं करुंगी। शालिनी के बार-बार कहने पर सीमा ने इंद्रा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से बी.ए.की पढ़ाई शुरू कर दी। देखते ही देखते ६ साल बीत गए। इसी साल सीमा ने अंग्रेजी बिषय से एम ए की पढ़ाई पूरी की थी।
अब सीमा शालिनी के घर के साथ-साथ उसके आफिस का काम भी संभालने लगी थी।
राजेश का अपनी कंपनी में प्रमोशन हो गया था। दोनों पति-पत्नी अच्छा कमाने लगे थे। बच्चों का भी अच्छे स्कूल में दाखिला कर दिया था। और अब वो सुकून भरी जिंदगी थी रहे थे।
राजेश का अपनी कंपनी में प्रमोशन हो गया था। दोनों पति-पत्नी अच्छा कमाने लगे थे। बच्चों का भी अच्छे स्कूल में दाखिला कर दिया था। और अब वो सुकून भरी जिंदगी थी रहे थे।
स्वरचित : मंजू बिष्ट
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
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