कोरोना के केस दिन पर दिन बढ़ते जा रहे थे। कोरोना को रोकने का एकमात्र उपाय था लाकडाउन। आज अचानक सायंकाल में प्रधानमंत्री मोदी जी ने टीवी पर लाइव आकर घोषणा कर दी, कि २४ मार्च से १४ अप्रेल तक देश में लाकडाउन रहेगा। यह सुनकर आशा बहुत ही ज्यादा विचलित हो गई, अपनी पड़ोसन किरण के लिए उसकी फिक्र और बढ गई। वह आसमान की ओर देखकर कहने लगी! "हे भगवान! आप किरण को यह कैसी दोहरी मार से मार रहे हैं, अभी तो महिना भर भी नहीं हुआ है उसके पति की तेरहवीं को। ऊपर से यह लाकडाउन लग गया है। आशा मन ही मन में बुदबुदाने लगी, उस दिन गाड़ियों के आपस में टकराने से कई घर उजड़ गए। मोहन ड्यूटी से रोज शाम को घर आता था।,,, पर! पता नहीं उस दिन क्यों छुट्टी लेकर दिन में ही घर आ गया!,,, मैंने कई बार सुना था कि, "मौत कभी अपने ऊपर इल्जाम नहीं लेती।" सही सुना था। मौत ने ही बुला रखा होगा। शाम को आता तो शायद बच जाता।,,,, जो कमाने वाला था वही उन्हें छोड़कर चला गया है। दो छोटी सी मासूम बेटियां हैं उसकी। कैसे संभालेगी वो खुद को और अपने बेटियों को। उसके ऊपर तो आसमान ही गिर गया है।,,,, इतनी छोटी उम्र में पति साथ छोड़कर चला गया। अब कैसे काटेगी आगे की पहाड़ सी जिंदगी को! क्या खायेंगी? और क्या खिलायेगी बच्चों को? लाकडाउन की खबर सुनकर तो वह पूरी तरह से टूट गई होगी!,,,, बहुत देर तक सोचने के बाद आशा ने निर्णय लिया कि वह हर हाल में किरण की मदद करेगी। और वह उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगी।
अपने मन की बेचैनी को शांत करने के लिए वह खेतों की ओर चल दी। और अपने मवेशियों के लिए घास काटने लगी, और घर आकर उसने दूसरे दिन का भी सारा काम निपटा डाला। रात्रि में भोजन करने के उपरांत उसने अपने पति के सामने किरण की बात छेड़ दी। आशा के पति का हृदय भी करुणा से परिपूर्ण था। आशा के मन की बात जानकर वो बोले! तूने तो मेरे मन की बात कह दी, मैं भी कई दिनों से यही बात सोच रहा था, कि अब किरण कैसे अपने घर को संभालेगी?,,, तू एक काम कर, राशन की एक पर्चा बना ले। कल मेरी तो ड्यूटी है, पर तू बाजार जाना और हम दोनों परिवार के लिए महीने- महीने भर का राशन खरीद लाना। पता नहीं यह लाकडाउन कब तक रहेगा।,,,, अपने पति की बात सुनकर आशा ने राहत की सांस ली। और फिर दूसरे दिन घर काम- धाम निपटा कर आशा बाजार चल दी।,,,,
आज बाजार में बहुत ही ज्यादा भीड़ हो रही थी। घंटों खड़े रहकर जैसे- तैसे आशा ने बनिए की दुकान से राशन खरीदा। फिर उसने कपड़े वाले की दुकान से ५० मीटर कपड़ा ख़रीदा। सब्जी मंडी तो भीड़ से खचा-खच भरा हुआ था। आशा ने भी बड़ी मुश्किल से २० धड़ी आलू और अन्य साग- सब्जी की खरीदारी की। और अंत में सभी सामान को टेंपो में डालकर घर की ओर चल दी। घर जाते- जाते आशा को रात हो चुकी थी। थोड़ा सामान आशा ने अपने घर उतारा और फिर टेंपो को लेकर किरण के घर की ओर चल दी। टेंपो की आवाज सुनकर किरण की दोनों बेटियां बाहर आंगन में आ गई। आशा और उन दोनों लड़कियों ने मिलकर सारा सामान घर के अंदर एक कोने में जाकर रख दिया।...
उसी कमरे के एक कोने में किरण उदास- निराश पता नहीं किस गहरे सोच- विचारों में डूबी हुई बैठी थी। अंदर कौन आ- जा रहा है उसे इतना भी भान नहीं था। आशा के टोकने पर किरण जैसे सपने से जागी। और अचानक आशा को देखकर बोली! "अरे! दीदी आप! कब आईं? बैठो! "और जैसे ही उसकी नजर सामान से भरे हुए थैलों में पड़ी तो उसने पूछा, " दीदी इतना सारा सामान लेकर इतनी रात में कहां से आ रही हो? और कहां जा रही हो?",,,,
"तुमने आज का सामाचार सुन ही लिया होगा"।
"हां दीदी" और इतना कहते ही किरण की आंखों से अविरल अश्रु धारा बहने लगी। साड़ी के पल्लू से अपने आंसू को पोंछते हुए कहने लगी, पता नहीं दीदी मुझे कौन से जन्मों के कर्मों के सजा मिल रही है।",,,,
आशा ने किरण के सिर पर अपना स्नेहिल हाथ फेरा और बोली, "किरण इस समय तेरे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ सकती हूं। और मैं तुम्हारी आर्थिक स्थिति से भी भलि- भांति परिचित हूं। लाकडाउन की खबर सुनकर मैं कल से तुम्हारे बारे में ही सोच रही थी। आज मैं राशन लेने बाजार जा रही थी, सोचा क्यों ना तुम्हारे लिए भी राशन खरीद लूं। इन थैलियों में राशन है।,,,, किरण को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। वो कभी राशन को तो कभी आशा के चेहरे को देख रही थी। आशा किरण के मन की उथल-पुथल को समझ गई थी। आशा कहने लगी, "किरण मैं हमेशा तेरे साथ खड़ी हूं। तू हिम्मत मत हार।,,,, मोहन इस दुनिया को छोड़ कर चला गया है। तू कितना ही अपना सिर पटक ले, वो कभी लौटकर नहीं आयेगा।,,, अब तू इस सच्चाई को स्वीकार कर ले और अपने जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कर।,,, और अपने परिवार का भरण-पोषण करने की सोच।,,,, यह सब तू तभी कर पायेगी, जब तू सच्चाई को स्वीकार करेगी। और आगे खुद को सशक्त और मजबूत बनायेगी।"
किरण एक बात बता! तेरी सासू मां ने बताया था मेरी बहू ने सिलाई- कढ़ाई सीख रखी है। "क्या तुझे सिलाई कढ़ाई आती है?",,,,
"दीदी शादी से पहले सीखी तो थी। पर! अब सब भूल गई हूं।"
"कोई बात नहीं,,, परसों से लाकडाउन लग रहा है आने- जाने वाले लोग कम हो जायेंगे। मैं ये कपड़ा लाईं हूं। तू दोबारा मेहनत कर, और खूब मेहनत कर। जो सिलाई का हुनर तेरे पास है,,,,उस हुनर को दोबारा निखार।, तुम्हारे पास खेत-खलिहान तो हैं नहीं। लेकिन सिलाई करके तू एक आत्मनिर्भर औरत बन सकती है। और दोनों बेटियों को पढ़ा- लिखा सकती है।,,,, तुझे पता है ना आस-पास कोई भी कपड़े सिलने वाला नहीं है सभी गांव वाले कपड़े सिलवाने बाजार जाते हैं। यह काम तेरे लिए अच्छा है,,, मैं भी तेरी मदद करुंगी।,,,, मैं गांव- गांव, घर- घर जाकर तेरी सिलाई का प्रचार करुंगी। बस तू मन लगाकर कर काम शुरू कर दें।",,,,,
मुसीबत की इस घड़ी में आशा के सहारे और उसकी बातों ने किरण को बहुत हिम्मत दी। अपने प्रति आशा के मन में इतनी ज्यादा फ़िक्र और ममता देखकर किरण आशा के गले से लिपट गई, और फूट-फूटकर रोने लगी। और रोते हुए कहने लगी। "दीदी! इस समय तुम साक्षात देवी के रूप में मेरे घर आई हो। मैं तो इस फ़िक्र में घुली जा रही थी कि मैं अब आगे क्या करूं, कैसे अपनी बेटियों का लालन-पालन करूं। दीदी आपने मुझे सहारा देने के साथ- साथ जिंदगी में आगे बढ़ने का रास्ता भी दिखा दिया है। मैं आपके इस एहसान को"....... आशा ने किरण के मुंह पर अपनी अंगुली रख दी और बोली "नहीं,,, अपनी जुबान पर कभी इस बात को मत लाना। तू मुझे अपनी जेठानी मानकर दीदी कहती है ना,,, बस, आज से तू सिर्फ मुझे दीदी कहना। दीदी अपनी बहिन पर कभी एहसान नहीं करती।,,,, समझ गई। एक समय था तेरी सासू मां ने भी हमारी बहुत मदद की थी। जिंदगी में उतार- चढ़ाव सभी के जीवन में आते हैं। आज तेरी बारी, तो कल मेरी बारी; एक दिन इसकी बारी, तो एक दिन उसकी बारी। यही जीवन है।"
"तू बस मेरी एक छोटी सी बात मान लेना, अब अपनी आंखों में आंसू मत आने देना। मां- बाप दोनों बनकर तूने ही अपनी बेटियों की हर जरूरत को पूरा करना है। इसीलिए अब तेरा अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी है।,,,, तभी तो तू अपने सभी फर्ज पूरे कर पाएगी। और अपनी बच्चियों की जिंदगी में एक नई किरण बन पायेगी।,,,, समझ गई।,,,,मानेगी ना मेरी बात।",,,,,,
"जी",,,किरण ने धीरे से सिर हिलाकर हामी भर दी।,,,, आशा की बातों से किरण को बहुत भरोसा और सहारा मिला। और अब किरण के आंसू थम चुके थे। थोड़ी देर इधर- उधर की बातें करने के बाद आशा ने किरण के चेहरे की ओर नजर मारी। किरण के चेहरे से चिंता की लकीरें कुछ कम हो गई थी। उसने किरण से कहा, रात बहुत हो चुकी है अब मैं भी घर जाती हूं। तू भी खाना बना ले और समय पर खा लेना। और फिर आशा अपने घर को ओर चल दी। किरण आंगन में खड़ी होकर आशा को जाते हुए तब तक देखती रही। जब तक वो बिजली की उजास में दिखाई दे रही थी। अपने पति और सासू मां से उसने आशा के बारे में सुना था। पर आज सचमुच ही उसने साक्षात देवी के दर्शन किए।,,,,
और फिर किरण धीरे- धीरे क़दम बढ़ा कर अपने घर के अंदर आ गई। उसने किवाड़ में चिटकनी चढ़ाई और अपनी दोनों बेटियों को अपनी कोहली में भर लिया।,,,
घर पहुंचकर आशा ने मास्क उतारा, और नहाने चली गई। नहा-धोकर उसने गरमागरम चाय बनाई और फिर चाय का गिलास लेकर चारपाई पर आकर बैठ गई। किरण के लिए उसके मन-मस्तिष्क में जो फ़िक्र थी वो अब थोड़ा कम हो गई थी।,,,,, पर देश में कोरोना के बढ़ते केस देखकर उसके शान्त चेहरे पर फिर से चिंता की लकीर दिखने लगी।
स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
मूल निवासी- हल्द्वानी, नैनीताल,
उत्तराखंड।
सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित
No comments:
Post a Comment