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कविता: बरखा रानी। -15

 मेघा रे मेघा जल्दी आओ।

बरखा रानी संग में लाओ।।

हम बच्चों की अरज है इतनी।
रिमझिम बरखा भेजो जल्दी।।
जून में गर्मी बहुत सताए।
खेलन को हमको तरसाए।।
वन- उपवन भी मुरझाने लागे।
सूरज की तपिश से सूखन लागेे।।
खग और मृग तेरा रास्ता निहारेे।
नीर की आस में तड़पने लागेे।।
नदियां भी देखो विरान हो गई।
मछली रानी परेशान हो गयी।।
आ ओ मेघा जल्दी से आओ।
बरखा रानी संग में लाओ।।
सुनकर बच्चों की मासूम अरज को।
घुमड़- घुमड़ कर मेघा आएं।।
रिमझिम-रिमझिम बरखा देखकर।
सारा जहां झूम- झूम कर नाचे।।

स्वरचित रचना : मंजू बिष्ट;
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
प्रकाशित


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