प्रिय सखी तुम ना घबराओ;
संघर्षों, तूफ़ानों से।
साक्षर, कर्मठ, स्वाभिमानी तुम;
सामना करो तूफानों से।।
दुख भी आते, सुख भी आते;
जीवन इसी का नाम है।
ना घबरा इन दुखों से;
जीवन में आते, उतार-चढ़ाव हैं।।
सोना भी तो आग में तपकर;
अपनी कीमत बढ़ाता है।
संघर्षों से लड़कर तुम्हें भी;
जीवन को सफल बनाना है।
प्रिय सखी..
संघर्षों से जो ना डरते;
इतिहास वही बनाते हैं।
व्यर्थ गंवा दे जो जीवन अपना;
वो हाथ मसलते रहते हैं।।
लोहा भी तो आग में तपकर;
अपनी पहचान बनाता है।
तूफानों से लड़कर तुम्हें भी,
जीवन उत्कृष्ट बनाना है।।
प्रिय सखी....
स्वरचित: मंजू बिष्ट,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।
प्रकाशित
So nice
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