Translate

Followers

संस्मरण: वो रिसता अपना सा ५

कल मेरे पतिदेव का जन्मदिन है। सुबह घर का सारा काम निपटाकर मैं सोच ही रही थी, कि इस महामारी में पतिदेव का जन्मदिन कैसे मनाऊं। तभी फोन की घंटी बजी, फोन प्रिया की मां का था। 


प्रिया एक बेहद ही गरीब परिवार की बच्ची है, प्रिया के पिता जी किसी गंभीर बिमारी से ग्रस्त हैं। उसकी मां और बड़ी बहनें अपने घर को चलाने के लिए घर- घर जाकर झाड़ू-पोछा करती हैं। प्रिया पढ़ाई में बहुत तेज़ और होनहार बच्ची है। इसीलिए मैं उसकी पढ़ाई-लिखाई में पूरी मदद करती हूं; ताकि गरीबी के कारण उसकी भी शिक्षा अधूरी ना रह जाए।


प्रिया का नंबर देखकर मुझे लगा, शायद कापियां खत्म हो गई होंगी। इसलिए प्रिया की मां का फोन आ रहा है। मोबाइल उठाकर इधर से मैं बोली, "हैलो आंटी जी कैसे हैं आप लोग? प्रिया ठीक है?" उधर से रुवासीं आवाज में आंटी जी बोली! "बेटी, पिछले दो दिन से बच्चे भूखे हैं! किसी ने भी अन्न का एक निवाला मुंह में नहीं डाला है। यदि तुम कुछ मदद कर दो तो बड़ी कृपा होगी"। यह सुनकर मैं स्तब्ध सी रह गई। और मन पीड़ा से द्रवित हो उठा! "हे भगवान' बच्चे दो दिन से भूखे हैं?",,, यह सुनकर मेरा मन बहुत व्याकुल हो उठा! और अनायास ही मेरे दोनों हाथ जुड़ गए, और मैं आंखें बंद करके बैठ गई। और प्रार्थना करने लगी; " कि हे भगवान इस महामारी ने पाश्चात्य देशों को तबाह कर दिया है! अब यह महामारी हमारे देश में अपने पांवों को पसार रही है। कोरोनावायरस कई बेगुनाहों को निगल चुका है। और अब लगता है कि इस महामारी के साथ- साथ कई लोग भूखमरी से भी अपनी जिंदगी गंवा देंगें। हे भगवान अब तू ही कोई चमत्कार कर! समस्त मानव जाति को इस महामारी से मुक्ति दिला"।


फिर मैं झटपट उठी, और अपने पति देव के पास जाकर बोली।

"कल आपका जन्मदिन है, मैं सोच रही थी कि इस बार आपका जन्म दिन को मैं अपने तरीके से मनाऊं"!

पतिदेव बोले, "श्रीमती जी लाक डाउन चल रहा है; जन्म दिन अगले साल मना लेंगे"!

मैं और प्यार से बोली, "आप हां तो कहिए ना" !

पति देव, "बोले ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी"!

और मैं फटाफट रसोईघर में गईं, घर में कल ही किराने का सामान आया हुआ था। मैंने उसमें से आधा सामान निकाल कर एक थैले में भर दिया; और पति देव के पास आकर बोली,

" सुनिए' आप यह थैला प्रिया के घर तक पहुंचा दीजिए ना।"

मेरे हाथ में इतना बड़ा थैला देखकर पतिदेव बोले, " श्रीमती जी क्या है इस थैले में!"

मैं उनके हाथ में वह थैला थमाते हुए बोली; "सुनिए ना' प्रिया लोगों ने पिछले दो दिन से कुछ भी नहीं खाया है"! यह सुनकर मुझे बहुत दुःख हो रहा है! इसीलिए मैंने सोचा, इस बार का जन्मदिन कुछ अलग तरीके से मनाते हैं, एक ज़रूरतमंद की जरूरत पूरी करते हैं।" मैं प्रिया की मां को फोन कर देती हूं, वह आपसे थैला ले लेंगी"! और "हां मुंह में मास्क पहनकर जाना"।

पतिदेव थोड़ी देर मेरा चेहरा देखते रहे, मानो कुछ पढ़ रहे हों। फिर होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट लेकर थैला उठाया और मास्क पहनकर बाहर निकल गए! और मुझे अपने इस छोटे से काम से बहुत खुशी हुई। और मन को बहुत सुकून और संतुष्टि मिली।


स्वरचित: मंजू बोहरा बिष्ट।

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

मूल निवासी- हल्द्वानी, नैनीताल।

उत्तराखंड।

प्रकाशित।....

2 comments: